वांछित मन्त्र चुनें
आर्चिक को चुनें

इ꣡न्द्रा꣢य सोम꣣ पा꣡त꣢वे꣣ म꣡दा꣢य꣣ प꣡रि꣢ षिच्यसे । म꣣नश्चि꣡न्मन꣢꣯स꣣स्प꣡तिः꣢ ॥१४४८॥

(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)
स्वर-रहित-मन्त्र

इन्द्राय सोम पातवे मदाय परि षिच्यसे । मनश्चिन्मनसस्पतिः ॥१४४८॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ꣡न्द्रा꣢꣯य । सो꣡म । पा꣡त꣢꣯वे । म꣡दा꣢꣯य । प꣡रि꣢꣯ । सि꣣च्यसे । मनश्चि꣢त् । म꣣नः । चि꣢त् । म꣡न꣢꣯सः । प꣡तिः꣢꣯ ॥१४४८॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1448 | (कौथोम) 6 » 3 » 3 » 5 | (रानायाणीय) 13 » 2 » 1 » 5


बार पढ़ा गया

हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अब परमात्मा को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (सोम) रसागार परमेश ! (मनश्चित्) मन को चेतानेवाले, (मनसः पतिः) मन के अधीश्वर, आप (इन्द्राय) जीवात्मा के (पातवे) पान के लिए और (मदाय) उत्साह के लिए (परिषिच्यसे) जीवात्मा में सींचे जा रहे हो ॥५॥

भावार्थभाषाः -

परमात्मा के ध्यान से प्राप्त हुआ आनन्दरस मन, बुद्धि, प्राण आदि को चेतनामय करता हुआ उपासक को जागरूक किये रखता है ॥५॥

बार पढ़ा गया

संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ परमात्मानमाह।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (सोम) रसागार परमेश ! (मनश्चित्) मनसः चेतयिता, (मनसः पतिः) मनसोऽधीश्वरः, त्वम् (इन्द्राय) जीवात्मने (पातवे) पानाय, (मदाय) उत्साहाय च (परिषिच्यसे) जीवात्मनि परिक्षार्यसे ॥५॥

भावार्थभाषाः -

परमात्मध्यानेन प्राप्त आनन्दरसो मनोबुद्धिप्राणादींश्चेतयन्नुपासकं जागरूकं करोति ॥५॥